Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 65
________________ . जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/६३ को मारता या बचाता नहीं है। मात्र मारने और बचाने का भाव करता है। छदामीलाल- ये बातें शास्त्रों में ही अच्छी लगती हैं। जीवन में इनका कोई अर्थ नहीं है। जिनमती- अरे शास्त्रों की बातें कोई शो केस में रखने की वस्तु नहीं है। उनमें तो साक्षात सर्वज्ञ परमात्मा द्वारा बताया गया । यथार्थ वस्तुस्वरूप वर्णित है। __छदामीलाल- हमें इससे कोई मतलब नहीं हैं, हम तो . अमर को लेने आये हैं। -- - - क्रूरसिंह- (अंदर प्रवेश करते हुए) हां-हां पिताजी ठीक कहते हैं, मैं भी अमर को ही खोज रहा था। . . जिनमती- अरे जरा ऊपर वाले से डरो, वहां देर है अंधेर नहीं है। सभी को अपने अपने कर्मों का फल एक न एक दिन अवश्य भोगना पड़ता है। क्रूरसिंह व छदामीलाल- (एक स्वर से). हमारा समय खराब मत करो, और बताओ कि अमर कहाँ है। हम तो अमर को मारने को ले जाने हेतु आये हैं। बता वह कहा है।

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