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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/५६ गुरुजी- फिर अब करना क्या है? हंसमुख अब कुछ करने का बाकी रहा नहीं। जानना और देखना। प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने कारण टिका रहकर बदलता है। ऐसा इस जगत का नाटक है, उसको देखकर अपने को देखना ही दुःख और शान्ति मिटाने का महत्त्वपूर्ण उपाय है। सभी बहुत खुश हुये और आज तो हसमुख ने शिकायत करके ठीक न्याय निकाला ऐसा कहकर सब बिखर गये।
इसीसमय एक नये सज्जन पाठशाला में आये और सब देखकर बोले, वाह रे वाह! यह तो भाई कॉलेज का कॉलेज है मनुष्य बनाने की महाशाला है । ऐसी शालायें तो ग्राम-ग्राम में होना चाहिये।
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ALESED
स्वभाव समर्थ है.. विभाव विपरीत है। संयोग प्रथक है।
इन तीन को यथार्थ जाने तो स्वभाव के आश्रय से पर्याय में निर्मल दशा प्रगट हो और विभाव अवस्था का अभाव हो।
स्वभाव सुखरूप है। विभाव दुख रूप है। संयोग ज्ञेय रूप है।
इन तीन को यथार्थ | जाने तो स्वभाव के आश्रय | से सुख रूप दशा प्रगट हो
और दुख रूप अवस्था का अभाव हो।