Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 68
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/६६ राजा अमरकुमार से क्षमा मांगता है, और जैन बन जाता है। कसाई लोग ने हिंसा का त्याग करके जैनधर्म धारण करते हैं। अमरकुमार के पिता तथा भाई भी अत्यन्त पश्चाताप करते हुए क्षमा माँगते हैं, माता अत्यन्त प्रसन्न होती है। अमरकुमार की अमर-कहानी तथा नमस्कार मंत्र का प्रभाव देखकर सर्वत्र जय-जय की ध्वनि गूंजने लगती है। अन्त में असार संसार से विरक्त होकर अमरकुमार अपने आत्महित का मार्ग प्रशस्त करने हेतु ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर साधुओं का संग करने हेतु निकल पड़ते हैं। तथा सभी पछताते . रह जाते हैं।) (पट्टाक्षेप) वस्तु जातमिदं मूढ़ प्रतिक्षणविनश्वरम्। जानन्नपि न जानासि ग्रहः कोऽप्यमनौषधः॥७॥ हे मूढ़ प्राणी! यह प्रत्यक्ष अनुभव होता है कि इस संसार में जो वस्तुओं का समूह है सो पर्यायों से क्षण-क्षण में नाश होने वाला है, इस बात को जानकर भी तू अनजान हो रहा है, यह तेरा क्या आग्रह है (हठ है)? क्या तुझ पर कोई पिशाच चढ़ गया है, जिसकी औषधि ही नहीं है। क्षणिकत्वं वदन्त्यार्या घटीघातेन भूभृताम्। क्रियतामात्मनः श्रेयो गतेयं नागमिष्यति॥८॥ . इस लोक में राजाओं के यहाँ जो घड़ी का घंटा बजता है और शब्द करता है सो सबके क्षणिकपने को प्रगट करता है अर्थात् जगत को मानो पुकार पुकार कर कहता है कि हे जगत के जीवो! जो कोई अपना कल्याण करना चाहते हो सो शीघ्र कर लो, नहीं तो पछताओगे, क्योंकि यह जो घड़ी बीत गई है, वह किसी प्रकार भी पुनर्वार लौटकर नहीं आयेगी। - ज्ञानार्णव : आचार्य शुभचन्द्र

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