Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 69
________________ १५ जीवन का ध्येय एक समय की बात है कि एक साथ कुछ मित्र आपस में चर्चा कर रहे थे, चर्चा करते-करते वे सभी अपनेअपने जीवन का ध्येय (उद्देश्य) बताने लगे। उनमें से...... एक मित्र बोला- कि भाई ! मैं तो ऊँची से ऊँची पढ़ाई करके अमेरिका जाऊँगा - यही मेरे जीवन का ध्येय है। दूसरे मित्र ने कहा- मेरा ध्येय तो भारत में ही रहकर स्वदेश की सेवा करने का है। परदेश में जाने का मेरा कोई विचार नहीं है। तीसरे मित्र ने कहा - इस समय देश की रक्षा करने की एक सबसे बड़ी समस्या हमारे समाने खड़ी है, अतः मैं तो सेना में भर्ती होकर दुश्मन देशों से अपने देश की रक्षा करूँगा और दुश्मनों को यह बता दूँगा कि अभी भी भारत में वीर जवान मौजूद हैं। बस, मेरे जीवन का तो एक मात्र यही ध्येय है। मेरा ध्येय तो व्यापार में एक करोड़ चौथे मित्र ने कहा रुपया कमाने का है। पांचवे मित्र ने कहा- भाई ! मेरा ध्येय न तो धन इकट्ठा

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