Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 56
________________ हसमुख की फरियाद हसमुख- श्रीमान् जी! मैं आज जब पाठशाला आ रहा था, तब भूपत ने मुझे गाली दी। गुरुजी- तब फिर आज हम इसी सम्बन्ध में विचार करते हैं। बताओं हसमुख ये भूपत कौन-सा द्रव्य है? हसमुख- ये तो जीवद्रव्य है। गुरुजी- तब गाली किसमें से बनी? बोलो बसंत। बसंत- यह तो पुद्गल द्रव्य में से। गुरुजी- पूरा कहो? कौन कहेगा? धरणीधर- श्रीमान् जी! यह अनेक पुद्गल द्रव्यों से बने हुये स्कंधों की भाषा वर्गणा की पर्याय है। गुरुजी- बराबर, तब भूपत तो जीव द्रव्य है और गाली नामक शब्द पुद्गल द्रव्य से बना है। तब फिर दोनों द्रव्य अलगअलग सिद्ध हुए। हसमुख-परन्तु मुझे गाली देने का भाव तो भूपत ने किया न? गुरुजी-तुम शान्त तो रहो, यह बात भी आती है। बोलो, भूपत ने गाली देने का भाव किया, इसलिये गाली निकली? कौन जबाब देगा? रजनी- नहीं श्रीमान्! ऐसा कैसे बने? जीव और पुद्गल दोनों स्वतन्त्र और अलग-अलग हैं। गुरुजी- तब पुद्गल के परमाणुओं को गाली-रूप परिणमाने के लिये भूपत को ऐसा भाव करना पड़ा, ऐसा कहें तो?

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