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जैनधर्म की कहानियाँ भाग- १०१४४
उन्होंने घर आकर माता - पिता तथा कुटुम्बीजनों से जिनदीक्षा लेने की अभिलाषा व्यक्त की। यह सुनकर उनके धर्मनिष्ठ मातापिता तथा कुटुम्बीजन हर्ष से अवाक् रह गये। माता-पिता की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। सिद्धकुमार ने उन्हें वैराग्य प्रेरक तत्त्व सुनाया। माता-पिता तथा कुटुम्बीजनों ने सिद्धकुमार को हार्दिक अनुमोदना पूर्वक जिनदीक्षा लेने की अनुमति दी और दीक्षा का बड़ा उत्सव मनाया। महान रथयात्रा के रूप में सब गाजे-बाजे सहित श्री जिनेन्द्राचार्य के निकट आये। सिद्धकुमार ने गुरुदेव को नमस्कार करके विधिपूर्वक समस्त परिग्रह का त्याग किया और निर्ग्रन्थ दशा धारण की।
जिनदीक्षा ग्रहण करके मुनिराज सिद्धकुमार अपने आत्मस्वभाव में लीन रहते हुए प्रचंड पुरुषार्थ द्वारा मोह शत्रु का चारों ओर
से नाश करने लगे। के समय स्व-स्वरूप विद्यमान अल्प मोहभाव को उद्यत हुए । क्षपक होकर मोह शत्रु का
एक दिन मध्यरात्रि में लीन होकर,
का भी नाश करने
श्रेणी पर आरूढ़ सम्पूर्ण नाश किया