Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 67
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/६५ - अमरकुमार- भाइयो! मेरे पिता ने धन के लिये मुझे बेच दिया, उनको दया नहीं आई, राजा जो कि प्रजा का रक्षक कहलाता है उसने भी मेरा वध करने की आज्ञा दे दी है तो अब तुम क्या विचार कर रहे हो? तुम अपने कर्तव्य का पालन करो। कुछ देर ठहरो तो.....मैं अपने गुरु द्वारा दिये हुए इष्टमंत्र (पंच नमस्कारमंत्र) का स्मरण कर लूं.... फिर तुम....। ' (ऐसा कहकर बालक वधस्तम्भ के समीप पहुँच जाता है, मस्तक झुकाकर बलिदान के लिये तैयार हो जाता है..... तथा अतिशान्तभाव से पंचपरमेष्ठी का स्मरण करता है, नि:स्तब्ध वातावरण उत्पन्न हो जाता है, केवल नमस्कार-मंत्र का मधुर नाद सुनाई देता है। - धड़ाक............धड़ाक.........धड़ाक . . - अचानक आकाश में से आवाज आती है, फाँसी के फंदे के स्थान पर माला की रचना हो गई, देव पुष्पवृष्टि कर अमरकुमार का बहुमान करने लगे। सभी ओर नमस्कार मंत्र का प्रभाव फैल गया।

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