________________
१४
अमरकुमार की अमर कहानी
[ जिसमें पंचपरमेष्ठी भगवन्तों को नमस्कार किया जाता है - ऐसा पंच नमस्कार मंत्र जैनियों का सर्वमान्य महामंत्र है। यहाँ उसी महामंत्र के दृढ़श्रद्धानी बालक अमरकुमार के जीवन की घटना पर आधारित लघु नाटिका प्रस्तुत है । ]
पात्र परिचय
अमरकुमार नाटक का नायक छदामीलाल नायक का पिता जिनमती
नायक की माता
नायक का भाई
नगर का राजा
क्रूरसिंह चोपट्ट फकीरचन्द
ज्ञानचन्द
क्रूरचित्त व स्वार्थी क्रूरचित्त व विवेकहीन कुशिक्षा देनेवाला नौकरी का पाबन्द नौकरी के पाबन्द
चालू-कालू
चाण्डाल
[ एक नगर का राजा एक किले का निर्माण करवा रहा है; किन्तु निर्माण का कार्य पूर्ण न होकर बारम्बार खण्डित हो जाता है, टूट जाता है। किले को बारम्बार गिरते देखकर राजा को किसी अज्ञानी गुरु ने सलाह दी कि किसी एक बालक का बलिदान दिया जावे तो किले का कोट सम्पूर्ण हो । मूर्खतावश राजा द्वारा भी उस सलाह को स्वीकार करके बलिदान के लिये बालक की खोज हेतु नगर में घोषणा करा दी जाती है । ]
J
दृढ़ धर्मश्रद्धानी क्रूरचित, लोभी व दरिद्री धर्मश्रद्धानी
कुगुरु उद्घोषक
उद्घोषक सुनो ! सुनो !!
सुनो !!! जो कोई भी बलिदान हेतु अपना पुत्र
व्यक्ति किले के कोट की पूर्णता के लिये देगा, उसको राज्य की ओर से सम्मानित किया जायगा और पुत्र के वजन बराबर स्वर्णमुद्राएँ दी जाएंगी।