Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 79
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/७७ ४. पात्र जीव मुनिराज के सम्बोधन से वैराग्य प्राप्त सिंह की आंखों से आंसुओं की धारा बहती है और वह सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है। यह सिंह कौन है? यह तो है भगवान महावीर का जीव, इसके १० भव पूर्व का यह प्रसंग है। विदेहक्षेत्रस्थ तीर्थंकर की वाणी से मुनियों ने जाना कि सिंह का यह जीव १० वें भव में तीर्थंकर होगा। __ जिस जंगल में वह वनराज एक हिरन को फाड़कर खा रहा था उसी जंगल में, ऊपर से दो मुनिराज उतरे... और सिंह के सामने आकर खड़े हो गए। सिंह तो आश्चर्य से देखता ही रह गया। मुनिओं ने उसे सम्बोधित करके कहा ___ अरे सिंह! अरे आत्मा! तुझे यह शोभा नहीं देता, १० वें भव में तो तू त्रिलोकीनाथ तीर्थंकर होनेवाला है। अरे! भविष्य में जगत को वीतरागी अहिंसा का सन्देश देने वाला तू आज ऐसी हिंसा में पड़ा है। छोड़ रे छोड़! यह हिंसा के भाव.....जाग....जाग!

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