Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 71
________________ सुखी कौन ? एक व्यक्ति बाजार की एक सबसे बड़ी दुकान में गया और उसने उस दुकान में अनेक प्रकार की सस्ती मंहगी अनेकों वस्तुएँ देखीं तथा अंत में जाते समय बोला दुकान बहुत अच्छी है। तब दुकानदार ने कहा कि भाई! आप कुछ खरीद तो करो। तब वह व्यक्ति बोला- भाई! तुम्हारी दुकान बहुत अच्छी है, परन्तु मुझे तुम्हारी दुकान में उपलब्ध वस्तुओं में से किसी भी वस्तु की जरूरत नहीं है, इसलिए मैं इन्हें लेकर क्या करूँ? दुकानदार ने कहा कि तुम दुकान की मात्र प्रशंसा करते हो, परन्तु खरीदते तो कुछ हो नहीं। तब वह व्यक्ति बोला कि भाई! सोचो जरा सोचो, आप एक दवा की दुकान पर जाओ, उसे देखो और सभी प्रकार के बड़े से बड़े रोगों की दवाओं को देख कर प्रसन्नता व्यक्त करो और किसी भी दवाई की खरीद न करो; क्योंकि किसी प्रकार का रोग नहीं होने से तु हें किसी भी प्रकार की दवा लेने की जरूरत ही नहीं है। इसी प्रकार इस जगत रूपी दुकान में जड़,चेतन समस्त पदार्थ भरे हुए हैं, सभी वस्तुएँ अपने-अपने स्वभाव में सुशोभित हैं। उनमें जिनके इच्छा रूपी रोग व्याप्त है, वे तो सुख की इच्छा से पर पदार्थों का ग्रहण करते हैं, परन्तु ज्ञानी तो कहते की मैं मेरे स्वरूप से परिपूर्ण हूँ तथा मैं मेरे स्वरूप

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