Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 47
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/४५ और लोकालोक प्रकाशक परमज्योति केवलज्ञान को प्रगट किया। केवलज्ञान होते ही चारों प्रकार के देव उनके केवलज्ञान का महोत्सव करने आये। केवलज्ञानरूपी दिव्यनेत्र के धारक उन अरहंत परमात्मा ने ॐ दिव्यध्वनि द्वारा मोक्षमार्ग का उपदेश करके अनेक जीवों के संसार ताप को शांत किया। इस प्रकार कई वर्ष तक सारे संसार में वस्तु स्वभाव का उपदेश करके अनेक जीवों को मोक्षमार्ग की प्राप्ति कराई। निर्वाण के पूर्व उनकी देह सम्मेद शिखर पर स्थित हो गई और तुरन्त योग निरोध करके चौदहवें गुणस्थान में प्रवेश किया और अल्पकाल में ही देह मुक्त होकर उनका आत्मा एक समय में लोकाग्र में स्थित हुआ और शाश्वत परमानन्दमय तथा केवलज्ञानादि गुणों सहित सर्वोत्कृष्ट सिद्धदशा को प्राप्त हुआ। inwwwmumm/ कालुष्यमेषि यदिह स्वयमात्मकामो, जागर्ति तत्र ननु कर्म पुरातनं ते। योऽहिं विवर्धयति कोऽपि विमुग्धबुद्धिः, स्वस्योदयाय स नरः प्रवरः कथं स्यात्॥३४॥ . हे आत्मन्! इस संसार में तुम पञ्चेन्द्रियों के विषयों की लालसा (इच्छा) करते हुए स्वयं अपने परिणाम कलुषित करते हो, क्योंकि इन विषयों की कामना (इच्छा) से तेरा पूर्व में बाँधा हुआ पाप कर्म जागृत होता है; क्योंकि जो कोई अज्ञानियों का चक्रवर्ती अपने कल्याण के उद्देश्य से सर्प को दूध पिलाकर पुष्ट करता है, वह किस प्रकार श्रेष्ठ हो सकता है? अपितु नहीं हो सकता है। - आचार्य सोमदेव

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