Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 29
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/२७ बाहर हैं।" - ऐसा सोचकर अर्हदत्त सेठ ने मुनियों का सत्कार नहीं किया और वहाँ से चले गये; किन्तु उनकी पुत्रवधू ने अत्यन्त भक्ति से विधिपूर्वक मुनियों को आहारदान दिया। आहार ग्रहण करके सातों मुनिवर भगवान के चैत्यालय में आये, जहाँ द्युतिभट्टारक आचार्य विराजमान थे। सातों ऋषि-मुनिवर ऋद्धि के प्रभाव से चार अंगुल ऊपर अलिप्तरूप से अर्थात् धरती से चार अंगुल ऊपर चले आ रहे थे, चैत्यालय में आकर उन्होंने धरती पर चरण रखे। उन सप्तर्षि भगवन्तों को देखते ही द्युतिभट्टारक आचार्य खड़े हुए और अत्यन्त आदरपूर्वक उन्हें नमस्कार किया। अन्य शिष्यों ने भी नमस्कार किया। सप्तर्षि भगवन्तों ने उनसे धर्मचर्चा की और फिर चैत्यालय में जिनवन्दना करके वे मथुरा नगरी लौट आये। - सप्तर्षि मुनिवरों के जाने पर कुछ ही समय पश्चात् अर्हदत्त । सेठ चैत्यालय में आये, तब द्युतिभट्टारक आचार्य ने उनसे कहा कि- “सात महर्षि महायोगीश्वर चारण मुनि यहाँ पधारे थे, तुमने भी उनके दर्शन अवश्य किये होंगे, वे मुनिवर महातप के धारक हैं और मथुरा नगरी में चातुर्मास कर रहे हैं। चारणऋद्धि से गगनविहार करके आहार के लिये चाहे जहाँ चले जाते हैं। आज उन्होंने अयोध्यापुरी में आहार लिया और फिर चैत्यालय की वंदना के हेतु यहां पधारे। हमारे साथ धर्मचर्चा भी की और फिर मथुरा नगरी लौट गये। वे महावीतरागी गगनगामी, परम उदारचेष्टा के धारक मुनिवर वंदनीय हैं।'' इत्यादि प्रकार से आचार्य के मुख से

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