Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१०/७६ चेलना ने कहा नहीं राजन् – आत्मसाधना में लीन मेरे गुरु को, वीतरागी जैनसन्तों को, शरीर का ऐसा ममत्व नहीं होता। वह ऐसे के ऐसे ही बैठे होंगे। अगर आपको प्रत्यक्ष देखना हो तो मेरे साथ चलिये। . राजा श्रेणिक जब रानी चेलना के साथ वहाँ जाकर यशोधर मुनिराज को वैसे के वैसे ही समाधि में बैठे देखते हैं तो वे स्तब्ध લણાં રાણી ‘બી યશોધર મુનિવરનો ઉપસર્ગ દુર કરે અને पिantea aajal sucium ki रह जाते हैं -उनका द्वेष पिघल जाता है, हृदय गद्-गद् हो जाते हैं। रानी मुनिराज की भक्ति करते हए सावधानी पूर्वक साँप को दूर करती है। तभी ध्यान पूर्ण होने पर मुनिराज राजा और रानी दोनों को धर्मवृद्धि का एक-सा आशीर्वाद देते हैं। मुनिराज की ऐसी महान समता देखकर राजा श्रेणिक चकित हो जाते हैं। धन्य हैं ऐसे जैन मुनिराज धन्य हैं ऐसा वीतरागी जैनधर्म! ऐसे बहुमान पूर्वक अपने अपराध की क्षमा मांगी और राजा ने जैनधर्म अंगीकार किया, सम्यग्दर्शन प्राप्त किया, उनका तो जीवन ही बदल गया। उस समय चेलना रानी की प्रसन्नता का क्या कहना।

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84