Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 10
________________ ईहा - अवग्रह से जाने हुए पदार्थ के विषय में उत्पन्न हुए संशय को दूर करते हुए विशेष की जिज्ञासा होना । जैसे- रस्सी आदि का ही स्पर्श होना चाहिए। अवाय - ईहा से जाने हुए पदार्थों में निश्चयात्मक ज्ञान होना । जैसे - यह रस्सी का ही स्पर्श है। धारणा-अवाय से जाना हुआ पदार्थों का ज्ञान इतना दृढ़ हो जाना कि कालान्तर में भी उस्का स्मरण रहे। वीर्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाले जीव के परिणाम विशेष को उत्थानादि कहते हैं। उत्थान - शारीरिक चेष्टा विशेष । कर्म - गमनागमन आदि क्रिया । बल-शारीरिक सामर्थ्य | वीर्य - आत्मिक शक्ति ( जीव - प्रभाव ) पुरुषाकार पराक्रम-बल और वीर्य की संयुक्त प्रवृत्ति । 5

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