Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 77
________________ ग्यारहवीं प्रतिमा एक दिन रात की है। चौविहार बेला करे, गाँव के बाहर पाँव संकोच कर और हाथ फैलाकर कायोत्सर्ग करे। बारहवीं प्रतिमा एक रात की है। चौविहार तेला करे । गाँव के बाहर शरीर वोसिरावे, नेत्र खुले रखे, पाँव संकोचे, हाथ पसारे और अमुक वस्तु पर दृष्टि लगाकर ध्यान करे । देव, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग सहे। इस प्रतिमा के आराधन से अवधि, मन:पर्याय और केवलज्ञान, इन तीन में से एक ज्ञान होता है। चलायमान हो जाय तो पागल बन जाय, दीर्घकाल का रोग हो जाय और केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाय। इन कुल बारह प्रतिमाओं का काल 7 मास 28 दिन का है। (13) तेरहवें बोले-क्रिया स्थान तेरह-1. अर्थ दण्ड-स्वयं के लिए या परिवारादि के लिए हिंसादि करे। 2. अनर्थ दण्ड-निरर्थक या कुत्सित अर्थ के लिए हिंसादि करे। ___3. हिंसा दण्ड-'इसने मुझे मारा था, मारता है या मारेगा'-इस भाव से अर्थात् संकल्प पूर्वक उस प्राणी को मारना । 4. अकस्मात् दण्ड-मारना किसी ओर को था, किन्तु मर जाय कोई दूसरा ही अर्थात् बिना उपयोग सहसा किसी जीव की घात हो जाना। 72

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