Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 18
________________ विरह द्वार श्री पन्नवणा सूत्र के छठे पद के आधार से 'विरह द्वार' का थोकड़ा इस प्रकार है प्रश्न-अहो भगवन्! चारों ही गति में उत्पन्न होने का विरह कितना है? उत्तर-हे गौतम ! चारों ही गति में उत्पन्न होने का विरह हो तो जघन्य 1 समय का, उत्कृष्ट 12 मुहूर्त का । पहली नारकी, भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, पहला-दूसरा देवलोक और सम्मूर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति का विरह जघन्य 1 समय का, उत्कृष्ट 24 मुहूर्त का। दूसरी नारकी से सातवीं नारकी तक का विरह हो तो जघन्य 1 समय का, उत्कृष्ट दूसरी नारकी का 7 दिन-रात का, तीसरी नारकी का 15 दिन-रात का, चौथी नारकी का 1 महीने का, पाँचवीं नारकी का दो महीनों का, छठी नारकी का 4 महीनों का और सातवीं नारकी का 6 महीनों का। तीसरे देवलोक से लगाकर सर्वार्थसिद्ध तक विरह हो तो जघन्य 1 समय का, उत्कृष्ट-तीसरे देवलोक का 9 रात-दिन और 20 मुहूर्त का। चौथे देवलोक का 12 रात-दिन और 10 मुहूर्त का। पाँचवें देवलोक का 22 ।। रात-दिन का। छठे देवलोक का 45 रात-दिन का। सातवें देवलोक का 80 रात-दिन का। आठवें

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