Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 72
________________ 9. प्रेष्य त्याग प्रतिमा - दूसरे से भी आरम्भ नहीं करावे । यह प्रतिमा जघन्य एक, दो या तीन दिन, उत्कृष्ट नव मास की है I 10. उद्दिष्ट भक्त त्याग प्रतिमा - अपने वास्ते आरम्भ करके कोई वस्तु देवे, तो लेवे नहीं । खुर मुण्डन करावे या शिखा रखे। कोई उनसे संसार सम्बन्धी कोई बात एक बार पूछे या बार-बार पूछे, तब जानता होवे, तो 'हाँ' कहे और नहीं जानता होवे तो 'ना' कहे । यह प्रतिमा जघन्य एक, दो या तीन दिन, उत्कृष्ट दस मास की है। 11. श्रमणभूत प्रतिमा - खुर मुण्डन करे या लोच करे । साधु जितना ही उपकरण, पात्र, रजोहरणादि रखे। स्वज्ञाति की गोचरी करे और कहे कि “मैं प्रतिमाधारी श्रावक हूँ ।" साधु के समान उपदेश देवे। यह प्रतिमा जघन्य एक, दो या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट ग्यारह मास की है। सभी प्रतिमाओं में साढ़े पाँच वर्ष लगते हैं । (12) बारहवें बोले-भिक्षु की बारह प्रतिमा - इन प्रतिमाओं की आराधना निम्नलिखित चौदह नियम से होती है — 1. शरीर पर ममता नहीं रखे, शरीर की शुश्रूषा नहीं करे । देव, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग समभाव से सहन करे । 2. एक दाति (दत्ति) आहार, एक दाति पानी, प्रासुक तथा 67

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