Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal
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1. समुच्चय संयत में
2. सामायिक संयत में
1
3. छेदोपस्थापनीय संयत में 1
संयम द्वार
जीव गुणस्थान योग उपयोग लेश्या
1
9
15
9
6
4
14
7
6
4
14
7
6
9
7
3
9
7
1
11
9
1
12
6
6
13
4. परिहारविशुद्धि संयत में 1
5. सूक्ष्म- संपराय संयत में 1
6.
यथाख्यात संयत में
1
1
14
7. संयतासंयत में
8.
असंयत में
9. नोसंयत नोअसंयत
1.
2.
0
0
2
0
नो संयतासंयत में अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े सूक्ष्म संपराय संयत, उनसे परिहारविशुद्धि संयत संख्यात गुण, उनसे यथाख्यात संयत संख्यात गुण, उनसे छेदोपस्थापनीय संयत संख्यात गुण, उनसे सामायिक संयत संख्यात गुण, उनसे समुच्चय संयत विशेषाधिक, उनसे संयतासंयत असंख्य गुण, उनसे नो संयत नो असंयत नो संयतासंयत अनन्त गुण और उनसे असंयत अनन्त गुण हैं ।
उपयोग द्वार
जीव
साकार उपयोगी में
14
अनाकार उपयोगी में 14
1
4
1
गुणस्थान योग उपयोग लेश्या
14
15
12
6
13
15
12
6
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