Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 17
________________ अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े संवृत्त - विवृत्त योनिक, उनसे विवृत्त - योनिक असंख्यात गुण, उनसे अयोनिक अनन्तगुण और उनसे संवृत्तयोनिक अनन्तगुण । चौथे प्रकार से-योनि तीन प्रकार की हैं- 1. कूर्मोन्नता (कछुए की पीठ के समान उठी हुई) 2. शंखावर्त्ता (शंख के समान आवर्त्त वाली) और 3. वंशीपत्रा (बाँस के दो पत्तों की तरह संपुट मिले हुए) । कूर्मोन्नता योनि 54 उत्तम पुरुषों की माताओं के होती है। शंखावर्त्ता योनि, चक्रवर्ती की श्रीदेवी के होती है, जिसमें जीव उत्पन्न होते हैं और मरते हैं, किन्तु सन्तान के रूप में जन्म नहीं लेते । वंशीपत्रा योनि सभी संसारी जीवों की माताओं के होती है, जिसमें जीव जन्म लेते भी हैं और नहीं भी लेते । 3. 63 श्लाघनीय पुरुषों में से 9 प्रतिवासुदेव को छोड़कर शेष 54 श्लाघनीय पुरुष समझना । 4. जैन तत्त्व प्रकाश (पू. श्री अमोलकऋषिजी द्वारा रचित) की द्वितीयावृत्ति सन् 1911 पृष्ठ 77 में लिखा है “श्रीदेवी के सन्तान रूप में उत्पन्न नहीं होते, लेकिन मोती रूप में उत्पन्न होते हैं” आगम से तो यह स्पष्ट नहीं होता है, लेकिन अगर मोती रूप में हो तो बाधा नहीं है । 121

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