Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 75
________________ BDUL ____14. प्रतिमाधारी साधु के मार्ग में हाथी, घोड़ा अथवा सिंह आदि जंगली जानवर सामने आये हों तो भी भय से रास्ता छोड़े नहीं, यदि वह जीव डरता हो, तो तुरन्त अलग हट जावे तथा रास्ते चलते धूप में से छाया में और छाया से धूप में आवे नहीं और शीत-उष्ण का उपसर्ग समभाव से सहन करे। पहली प्रतिमा एक मास की है, जिसमें एक दाति अन्न और एक दाति पानी लेना कल्पता है। दूसरी प्रतिमा एक मास की है, जिसमें दो दाति अन्न और दो दाति पानी लेना कल्पता है। तीसरी प्रतिमा एक मास की है, जिसमें तीन दाति अन्न और तीन दाति पानी लेना कल्पता है। इसी प्रकार चौथी, पाँचवी, छठी और सातवीं प्रतिमा भी एक-एक मास की है। इनमें क्रमश: चार दाति, पाँच दाति, छह दाति और सात दाति आहार पानी लेना कल्पता है। आठवीं प्रतिमा सात अहोरात्रि (दिन-रात) की है। चौविहार एकान्तर तप करे, ग्राम के बाहर रहे, इन तीन आसन में से एक आसन करे-चित्ता सोवे (उत्तानासन), करवट (एक बाजू पर) सोवे (पार्वासन), पालथी लगाकर सोवे (निषद्यासन)। परीषह से डरे नहीं। 70

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