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चार अनुत्तर विमान का अवस्थान काल असंख्यात हजारों वर्षों का है। इससे उनका विरह काल हजार असंख्यात काल सिद्ध हो जाता है। यह असंख्यात का भेद दूसरा असंख्यात अर्थात् मध्यम परीत्त असंख्यात समझना चाहिए। वह ग्रैवेयक के ऊपरी त्रिक से संख्यात गुणा ही होगा। सर्वार्थसिद्ध विमान का उत्कृष्ट अन्तर पल्योपम का संख्यातवाँ भाग है। वह चार अनुत्तर विमान के अन्तर से असंख्यात गुणा बड़ा है, क्योंकि सर्वार्थसिद्ध में चार अनुत्तर विमान से असंख्यात
गुणे कम देवता होते हैं। 3. सिद्ध गति का उत्कृष्ट विरह छह मास का बतलाया है। अर्थात्
छह मास के बाद अवश्य ही कोई न कोई कर्मभूमिज सन्नी
मनुष्य सिद्ध होता ही है। 4. तीन विकलेन्द्रिय और पाँच असन्नी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में उत्कृष्ट
विरह अन्तर्मुहर्त का होता है। साथ ही इन जीवों के अपर्याप्त व पर्याप्त दोनों ही भेद शाश्वत भी होते हैं। इसका कारण यह है कि यद्यपि अपर्याप्त अवस्था का काल भी अन्तर्मुहूर्त है तथा विरह का काल भी अन्तर्मुहूर्त्त है तथापि अपर्याप्त अवस्था का अन्तर्मुहूर्त बड़ा होता है तथा विरह का अन्तर्मुहूर्त छोटा होता है। इसलिए विरह काल में भी तीन विकलेन्द्रिय और असन्नी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय अपर्याप्त अवस्था में भी शाश्वत होते हैं। पर्याप्त अवस्था में लम्बी स्थिति होने से वे शाश्वत होते ही हैं।
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