Book Title: Ratnastok Mnjusha Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal View full book textPage 9
________________ वैज्ञानिक साधनों से भी जिन्हें देखा नहीं जा सके, वे सब सूक्ष्म पुद्गलास्तिकाय के स्कंध कहलाते हैं। बादर पुद्गलस्तिकाय का स्कंध-जो अनन्तानन्त परमाणुओं से मिलकर बना हुआ स्कंध हो, जो अष्टस्पर्शी हो, वे सब बादर पुद्गलास्तिकाय के स्कंध कहलाते हैं। चार बुद्धि-1. औत्पातिकी-जो बुद्धि बिना देखे, सुने और सोचे ही पदार्थों को सहसा ग्रहण करके कार्य को सिद्ध कर दे। (2) वैनयिकी बुद्धि-गुरु महाराज आदि की सेवा शुश्रूषा करने से प्राप्त होने वाली बुद्धि। (3) कार्मिकी बुद्धि-कर्म अर्थात् सतत अभ्यास और विचार से विस्तृत होने वाली बुद्धि। जैसे-सुनार, किसान आदि कर्म करतेकरते अपने कार्य में उत्तरोत्तर दक्ष हो जाते हैं। (4) पारिणामिकी बुद्धि-अति दीर्घकाल तक पूर्वापर पदार्थों के देखने आदि से उत्पन्न होने वाला आत्मा का धर्म, परिणाम कहलाता है। उस परिणाम के निमित्त से होने वाली बुद्धि। अर्थात् वयोवृद्ध व्यक्ति की बहुत काल तक संसार के अनुभव से प्राप्त होने वाली बुद्धि। अवग्रह-इन्द्रिय और पदार्थों के योग्य स्थान में रहने पर होने वाला सामान्य प्रतिभास (बोध)। जैसे घोर अंधेरी रात्रि में रस्सी आदि का स्पर्श होना।Page Navigation
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