Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 87
________________ 3. उस वृत्ति की कोटि-पद प्रमाण व्याख्या को वार्त्तिक कहते हैं। इन सूत्र, वृत्ति और वार्त्तिक के भेद से उपर्युक्त भौम, उत्पाद आदि आठों प्रकार के श्रुत के (8 x 3 = 24) चौबीस भेद हो जाते हैं। ____25. विकथानुयोगश्रुत-स्त्री, भोजन-पान आदि की कथा करने वाले तथा अर्थ-काम आदि की प्ररूपणा करने वाले पाकशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र आदि। ____26. विद्यानुयोगश्रुत-रोहिणी, प्रज्ञप्ति, अंगुष्ठप्रसेनादि विद्याओं को साधने के उपाय और उनका उपयोग बताने वाला शास्त्र। 27. मंत्रानुयोगश्रुत-लौकिक प्रयोजनों के साधक अनेक प्रकार के मंत्रों का साधन बताने वाला मंत्र शास्त्र। 28. योगानुयोगश्रुत-स्त्री-पुरुषादि को वश में करने वाले अंजन, गुटिका आदि को बतलाने वाला शास्त्र। 29. अन्य तीर्थिक प्रवृत्तानुयोग-कपिल, बौद्ध आदि मतावलम्बियों के द्वारा रचित शास्त्र। (30) तीसवें बोले-महामोहनीय कर्म-बन्ध के तीस स्थान1. त्रस जीव को जल में डूबा कर मारे। 2. त्रस जीव को श्वाँस रूँध कर मारे। 82

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