Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 48
________________ 5. उपयोग पहले व तीसरे गुणस्थान में 3 अज्ञान व 3 दर्शन ये 6 उपयोग होते हैं। दूसरे, चौथे व पाँचवें गुणस्थान में 3 ज्ञान व 3 दर्शन ये 6 उपयोग होते हैं। छठे से लेकर बारहवें गुणस्थान तक के साधुसाध्वियों में 4 ज्ञान व 3 दर्शन ये 7 उपयोग मिल सकते हैं। तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानवर्ती केवली भगवन्तों में केवलज्ञान व केवलदर्शन ये दो उपयोग ही मिलते हैं। दसवें गुणस्थान का अन्तर्मुहूर्त छोटा होने से तथा वैसा ही जीव का स्वभाव होने से इस गुरस्थान में 4 ज्ञान की ही प्रवृत्ति मानी जाती है। 3 दर्शन की प्रवृत्ति नहीं मानी जाती। अत: इस गुणस्थान में क्षयोपशम की दृष्टि से 7 उपयोग तथा प्रवृत्ति की दृष्टि से 4 उपयोग माने जाते हैं। 6. लेश्या पहले से लेकर छठे गुणस्थान तक के जीवों में कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल ये छहों लेश्याएँ मिलती हैं। सातवें गुणस्थान में तेजो, पद्म, शुक्ल ये तीन शुभ लेश्या मिलती हैं आठवें से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक के जीवों में एकमात्र शुक्ल लेश्या ही मिलती है। चौदहवाँ गुणस्थान अयोगी होने के कारण लेश्या रहित होता है, अलेशी माना जाता है। 43

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