Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 68
________________ 5. ब्रह्मचारी पुरुष, स्त्री के रुदन, गीत, हास्य, आक्रंद, कुजित इत्यादि शब्द सुनाई पड़े, वैसे भींत या टाट्टी की आड़ में रहे नहीं (पास के मकान में से भी इनकी ध्वनि कानों में आती हो तो वहाँ नहीं रहे)। यदि रहे, तो मेघ और मयूर का दृष्टान्त । 6. ब्रह्मचारी पुरुष, स्त्री के साथ पहले भोगे हुए भोगों को याद नहीं करे, यदि याद करे, तो जिनरक्षित और रयणादेवी का दृष्टान्त । 7. ब्रह्मचारी पुरुष, प्रतिदिन सरस - स्वादिष्ट आहार करे नहीं, यदि करे, तो सन्निपात के रोगी को दूध-मिश्री का दृष्टान्त । 8. ब्रह्मचारी पुरुष, लूखा एवं निरस आहार भी खूब हँस कर खावे नहीं, यदि अधिक खावे, तो सेर की हाँडी में सवा सेर का दृष्टान्त । 9. ब्रह्मचारी पुरुष को स्नान शृङ्गार करना नहीं, शरीर का मण्डन - विभूषा करना नहीं, यदि करे, तो रंक के हाथ में रत्न का दृष्टान्त। (10) दसवें बोले - दस प्रकार का यति धर्म 1. खंति-अपराधी पर वैरभाव नहीं रख कर क्षमा करना । 2. मुत्ति - लोभ रहित बनना । 3. अज्जवे - सरलता - निष्कपटता । 63

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