Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 59
________________ 5. केवलज्ञानी में 1 2 7 2 1 6. मतिश्रुतअज्ञानी में 14 2 13 6 6 7. विभंग ज्ञानी में 2 2 13 6 6 अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े मन:पर्याय ज्ञानी, उनसे अवधिज्ञानी असंख्यात गुण, उनसे मतिश्रुत ज्ञानी परस्पर तुल्य और विशेषाधिक, उनसे विभंग ज्ञानी असंख्यात गुण, उनसे केवल ज्ञानी अनन्त गुण, उनसे सज्ञानी विशेषाधिक, उनसे मतिश्रुत अज्ञानी परस्पर तुल्य और अनन्त गुण। दर्शन द्वार जीव गुणस्थान योग उपयोग लेश्या 1. चक्षुदर्शनी में 6 12 14 10 6 2. अचक्षुदर्शनी में 14 12 15 10 6 3. अवधिदर्शनी में 2 12 15 10 6 4. केवलदर्शनी में 1 2 7 2 1 अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े अवधिदर्शनी, उनसे चक्षुदर्शनी असंख्यात गुण, उनसे केवलदर्शनी अनन्त गुण और उनसे अचक्षुदर्शनी अनन्त गुण हैं। 17. पुरानी पुस्तकों में मतिश्रुत अज्ञानी से समुच्चय अज्ञानी विशेषाधिक लिखा हुआ था लेकिन यह उचित नहीं है, क्योंकि विभंग ज्ञानी नियम से मतिश्रुत अज्ञानी होते ही हैं। मूल में भी यह बोल नहीं है।

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