Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 81
________________ हमेशा क्रोध में जलता रहे 10. दूसरे के अवगुण बोले, चुगली-निंदा करे 11. निश्चयकारी भाषा बोले 12. नया क्लेश खड़ा करे 13. दबे हुए क्लेश को वापस जगावे 14. अकाल में स्वाध्याय करे 15. सचित्त पृथ्वी से भरे हुए हाथों से गोचरी करे 16. एक प्रहर रात्रि बीतने पर भी जोर-जोर से बोले 17. गच्छ में भेद उत्पन्न करे 18. क्लेश फैला कर गच्छ में परस्पर दु:ख उपजावे 19. सूर्य उदय होने से अस्त होने तक खाया ही करे और 20. अनेषणीय अप्रासुक आहार लेवे। (21) इक्कीसवें बोले-सबल (संयम को बिगाड़ने वाले) के इक्कीस दोष 1. हस्तकर्म करे। 2. मैथुन सेवे। 3. रात्रि-भोजन करे। 4. आधाकर्मी आहारादि सेवन करे। 5. राजपिण्ड सेवन करे। 6. पाँच बोल सेवे-खरीद किया हुआ, उधार लिया हुआ, जबरन् छिना हुआ, स्वामी की आज्ञा बिना लिया हुआ और स्थान पर या सामने लाकर दिया हुआ आहार आदि ग्रहण करे (साधु को देने के लिए ही खरीदा हो। अन्यथा स्वाभाविक तो सभी खरीदा जाता है)।

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