Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 97
________________ 27. गुरुजन के व्याख्यान को ध्यान से नहीं सुन कर उपेक्षा करे। 28. गुरुजन व्याख्यान देते हों, तब सभा में भेद डालने के लिए कहे-“महाराज! गोचरी का या अमुक काम का समय हो गया है।" 29. गुरुजन व्याख्यान देते हों, तब श्रोताजन के मन को व्याख्यान से हटाने की चेष्टा करे। 30. गुरुजन का व्याख्यान पूरा नहीं हुआ हो, उसके पूर्व ही आप व्याख्यान शुरू कर दे। 31. गुरुजन आदि की शय्या-आसन को पाँव से ठुकरावे। 32. बड़ों की शय्या पर आप खड़ा रहे, बैठे, सोए। 33. गुरु के शयन-आसन से अपना शयन-आसन ऊँचा करे या बराबर (समान) करे और उस पर सोए, बैठे तो आशातना लगे। 92

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