Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 27
________________ 11. बलदेव व वासुदेव का उत्कृष्ट विरह देशोन 20 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है, जिसे इस प्रकार समझा जा सकता हैहर उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी के प्रथम व अन्तिम वासुदेव आदि (बलदेव, चक्रवर्ती और तीर्थङ्कर) अपने-अपने आरे के निश्चितकाल बीतने पर ही होते हैं, ऐसा मानने की परम्परा है। अवसर्पिणी काल के प्रथम वासुदेव भगवान श्रेयांसनाथ के समय में हुए। उससे पहले की उत्सर्पिणी के अन्तिम वासुदेव 14वें तीर्थङ्कर के समय हुए होंगे, ऐसा माना जाता है। भगवान श्रेयांसनाथ से भगवान ऋषभदेव तक का अन्तर देशोन एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम का, उनसे पूर्व हुए उत्सर्पिणी के अन्तिम तीर्थङ्कर का अन्तर 18 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का (उत्सर्पिणी काल का चौथा आरा 2 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का + पाँचवाँ आरा 3 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का + छठा आरा 4 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का + अवसर्पिणी काल का पहला आरा 4 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का + दूसरा आरा 3 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का + तीसरा आरा 2 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का) उनसे उत्सर्पिणी काल के चौदहवें तीर्थङ्कर का समय देशोन एक कोड़ाकोड़ी का (उत्सर्पिणी के अन्तिम वासुदेव का समय) कुल मिलाकर देशोन 1 + 2 + 3 + 4 + 4 + 3 + 2 + 1 (देशोन) = देशोन (कुछ कम) 20 कोड़ाकोड़ी सागरोपम का उत्कृष्ट विरह हुआ। ★★★★★ | 22|

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