Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 42
________________ 98 बोल की अल्पबहुत्व सम्बन्धी उल्लेखनीय तथ्य 1. 98 बोलों की अल्पबहुत्व क्रमश: समझनी चाहिए। इनमें यह बतलाया गया है कि एक के बाद दूसरा बोल कितना गुणा अधिक है। जिन बोलों की अल्पबहुत्व इस थोकड़े में बतलायी है, वह तभी सम्भव होगी, जबकि जिससे तुलना कर अल्पबहुत्व कही गई है, वे दोनों बोल अपनी उत्कृष्ट अवस्था में विद्यमान हों। जैसे-23वाँ बोल है-दूसरी नरक के नेरइये असंख्यात गुण तथा 24वाँ बोल है-सम्मूर्छिम मनुष्य असंख्यात गुण । इन दोनों बोलों में उक्त अल्पबहुत्व तभी सम्भव है जबकि 23वाँ तथा 24वाँ दोनों अपनी-अपनी उत्कृष्ट अवस्था में विद्यमान हों। 3. 98 बोलों में कुछ बोल अशाश्वत भी हैं, जैसे-24वाँ-विरह की अपेक्षा, 95वाँ-श्रेणी में विरह की अपेक्षा, 97वाँ-14वें गुणस्थान में विरह की अपेक्षा। 24वाँ बोल सम्मूर्छिम मनुष्य असंख्यात गुणा है। जब 24 मुहूर्त का उत्कृष्ट विरह पड़ता है तब यह बोल मिलता ही नहीं है। 95वाँ बोल छद्मस्थ जीव विशेषाधिक है। यह अल्पबहुत्व 94वें बोल की अपेक्षा तुलना करने पर घटित होती है। इन 37

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