Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ अल्पबहुत्व संबंधी ज्ञातव्य नरदेव सबसे थोड़े हैं, इसका कारण यह है कि प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में प्रत्येक भरत और ऐरवत क्षेत्र में बारह - बारह ही उत्पन्न होते हैं। महाविदेह क्षेत्रों के विजयों में वासुदेवों के होने से सभी विजयों में वे एक साथ उत्पन्न होते हैं। अतः यहाँ भरत - ऐरवत क्षेत्र की अपेक्षा से कथन समझना चाहिए। नरदेवों से देवाधिदेव संख्यात गुणा है, क्योंकि भरत - ऐरवत क्षेत्रों में चक्रवर्तियों से दुगुने अर्थात् 24-24 होते हैं और महाविदेह क्षेत्र के विजयों में वासुदेवों की मौजूदगी में भी वे उत्पन्न होते हैं। देवाधिदेवों से धर्मदेव संख्यात गुणा है, क्योंकि धर्मदेव एक ही समय में जघन्य दो हजार करोड़, उत्कृष्ट नौ हजार करोड़ महाविदेहादि क्षेत्रों में पाये जाते हैं। धर्मदेवों से भव्य द्रव्य देव असंख्यात गुणा है, क्योंकि देव गति में जाने वाले देशविरत, अविरत सम्यग्दृष्टि आदि तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय असंख्यात होते हैं। भव्य द्रव्य देवों से भाव देव असंख्यात गुणा है। इसका कारण यह है कि भाव देव स्वाभाविक रूप से ही असंख्यात गुणा अधिक हैं। 28

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98