Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 21
________________ देवलोक उत्कृष्ट विरह नवाँ देवलोक संख्यात मास अर्थात् एक वर्ष के अन्दर दसवाँ देवलोक संख्यात मास अर्थात् एक वर्ष से कुछ अधिक ग्यारहवाँ देवलोक संख्यात वर्ष अर्थात् 100 वर्ष के अन्दर बारहवाँ देवलोक संख्यात वर्ष अर्थात् 100 वर्ष से कुछ अधिक नव ग्रैवेयक की प्रथम त्रिक संख्यात सौ वर्ष अर्थात् 1,000 वर्ष के अन्दर नव ग्रैवेयक मध्यम त्रिक संख्यात हजार वर्ष अर्थात् 1 लाख वर्ष के अन्दर नव ग्रैवेयक अन्तिम त्रिक संख्यात लाख वर्ष अर्थात् 1 करोड़ वर्ष के अन्दर चार अनुत्तर विमान के देवों का विरह-भगवती शतक 5 उद्देशक 8 में विरह से दुगुना अवस्थान काल बताया गया है। जैसे पहली नारकी का 24 मुहूर्त का विरह तथा अवस्थान काल 48 मुहूर्त का बताया है। इसी प्रकार तीसरे देवलोक का अवस्थान काल 18 रात-दिन तथा 40 मुहूर्त का बताया, आगे भी दुगुना अवस्थान काल बताया है।

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