Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 29
________________ के स्वामी हैं, 6 खण्ड के भोक्ता हैं, 32 हजार मुकुट-बन्ध राजा जिनकी आज्ञा में रहते हैं, उन्हें 'नरदेव' कहते हैं । अहो भगवन् ! धर्मदेव किसे कहते हैं ? हे गौतम! जो अनगार 27 गुणों को धारण करते हैं, उन्हें 'धर्मदेव' कहते हैं । अहो भगवन्! देवाधिदेव किसे कहते हैं ? हे गौतम! 34 अतिशय, 35 वाणी के गुणों से युक्त, उत्पन्न ज्ञान- दर्शन के धारक, सर्वज्ञ - सर्वदर्शी तीर्थङ्कर भगवान को 'देवाधिदेव' कहते हैं । अहो भगवन् ! भावदेव किसे कहते हैं ? हे गौतम! जिन जीवों के देव गति नाम कर्म एवं देवायु का उदय हो, वे भावदेव कहलाते हैं । भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक- ये चार जाति के देव 'भावदेव' होते हैं । 3. आगति द्वार - भव्य - द्रव्य देव की आगति - 284 की । 179 की लड़ी (101 सम्मूर्च्छिम मनुष्य, 48 तिर्यञ्च, 15 कर्मभूमि के अपर्याप्त व पर्याप्त), 7 नारकी, सर्वार्थसिद्ध को छोड़कर 98 जाति के देव के पर्याप्त । नरदेव की आगति-82 की। पहली नारकी, 10 भवनपति, 26 वाणव्यंतर, 10 ज्योतिषी, 12 देवलोक, 9 लोकांतिक, 9 ग्रैवेयक और 5 अनुत्तर विमान के पर्याप्त । 24

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