Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 96
________________ 18. बड़ों के साथ भोजन करते समय सरस, मनोज्ञ स्वयं अधिक तथा शीघ्र करे । आहार, 19. गुरुजन आदि के पुकारने पर भी मौन रहे। 20. गुरुजन आदि के बुलाने पर अपने आसन पर बैठे ही कहे-“मैं यहाँ हूँ”, परन्तु आसन छोड़कर उनके पास जावे नहीं । 21. गुरु के बुलाने पर जोर से तथा अविनय से कहे कि 'क्या कहते हो ?' 22. गुरु आदि कहे- 'हे शिष्य ! यह काम (वैयावच्चादि) तुम्हारे लिए लाभकारी है, इसे करो, तब कहे कि - 'यदि लाभकारी है, तो आप ही क्यों नहीं कर लेते । ' 23. शिष्य, बड़ों के साथ कठोर-कर्कश भाषा बोले । 24. शिष्य, गुरुजन के साथ वैसे ही शब्द बोले, जैसे गुरुजन शिष्य के साथ बोलते हैं। 25. गुरुजन धर्मोपदेश देते हों तब सभा में ही कहे कि 'आप जो कहते हो वैसा उल्लेख कहाँ है ?' 26. गुरुजन से व्याख्यान में कहे कि - 'आप तो भूलते हो, यह कहना सत्य नहीं है ।' 91

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