Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और असंज्ञी मनुष्य में तीनों योनियाँ पाई जाती हैं । अल्पबहुत्व-सब से थोड़े जीव मिश्र - योनिक, उनसे उष्णयोनिक असंख्यात गुण, उनसे अयोनिक ( सिद्ध) अनंत गुण और उनसे शीत -योनिक अनंत गुण हैं। दूसरे प्रकार से योनि तीन प्रकार की हैं - 1. सचित्त 2. अचित्त और 3. मिश्र । नारक और देव के चौदह दंडकों में एक अचित्त योनि ही होती है । पाँच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और असंज्ञी मनुष्य, इन सभी में तीनों प्रकार की योनियाँ होती हैं। संज्ञी तिर्यञ्च और संज्ञी मनुष्य में एक मिश्र - योनि पाई जाती है। अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े मिश्र-योनिक, उनसे अचित्त-योनिक असंख्यात गुण, उनसे अयोनिक (सिद्ध) अनन्त गुण और उनसे सचित्त-योनिक अनन्त गुण हैं । तीसरे प्रकार से योनि तीन प्रकार की हैं- 1. संवृत्त ( ढकी हुई) 2. विवृत्त (खुली - प्रकट) और 3. संवृत्त - विवृत्त (कुछ ढकी कुछ खुली ) । नारक व देव के 14 दंडक और 5 स्थावर, इन 19 दंडकों में एक संवृत्त योनि होती है। तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय तथा असंज्ञी मनुष्य में एक विवृत्त योनि होती है और संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय तथा संज्ञी मनुष्य में संवृत्त-विवृत्त योनि होती है । 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98