Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 13
________________ श्वासोच्छ्वास के थोकड़े सम्बन्धी ज्ञातव्य तथ्य 1. इस थोकड़े में यह बतलाया गया है कि संसारी जीव एक बार श्वासोच्छ्वास लेने के बाद दुबारा श्वासोच्छ्वास कब लेते हैं, इन दोनों के बीच में कितना अन्तर होता है। दूसरे शब्दों में श्वास लेने में कितना-कितना विरह (अन्तर) पड़ता है, उसे इस थोकड़े से जाना जा सकता है। 2. देवों में जितने सागरोपम की स्थिति होती है, उनके उतने पक्ष जितना श्वासोच्छ्वास क्रिया का विरह काल होता है। 3. श्वासोच्छ्वास का विरह (अन्तर) बाह्य श्वासोच्छ्वास की अपेक्षा समझना चाहिए। 4. देवताओं में श्वास ग्रहण की प्रक्रिया अन्तर्मुहूर्त तक चलती है फिर अन्तर्मुहूर्त तक श्वास छोड़ते हैं। उदाहरण के रूप में एक सैकण्ड तक श्वास लेते रहना फिर एक सैकण्ड तक श्वास छोड़ते रहना। अर्थात् अन्तर्मुहूर्त तक श्वास लेने छोड़ने की प्रक्रिया चलती है। 5. श्वासोच्छ्वास के थोकड़े से स्पष्ट होता है कि सामान्यत: जो जीव जितने अधिक दुःखी होते हैं, उन जीवों की श्वासोच्छ्वास क्रिया उतनी ही अधिक और शीघ्र चलती है। अत्यन्त दुःखी जीवों के तो यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। | 8

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