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_ 'कुवलयमाला' ग्रंथ से प्रमाणित है कि यह नगर ईसा की आठवीं शताब्दी में आबाद था। विक्रम संवत् ८३५ में यहाँ वत्सराज' नामक प्रतिहार राजा का राज्य था और आचार्य वीरभद्र द्वारा निर्मापित ऋषभदेव मन्दिर में दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरिजी ने इस महान् ग्रन्थ-रत्न को रच कर पूर्ण किया था। उस समय यह नगर देवालयों और लक्षाधीशों की हवेलियों से समृद्ध था। सम्राट वत्सराज के पश्चात उसका पुत्र नागभट यहाँ से राजधानी हटाकर कन्नौज चला गया पर प्रतिहार शासन तो कायम ही था। यहाँ पर कौन-कौन प्रतिहार शासक हुए यह पता नहीं पर दशवीं से बारहवीं शताब्दी तक मालवा के परमारों का यहाँ शासन था। जालोर के तोपखाने में स्थित परमार वीसलदेव के लेखानुसार १ वाक्पतिराज, २ चन्दन, ३ देवराज, ४ अपराजित, ५ विज्जल, ६ धारावर्ष और ७ वीसल' नामक राजा हुए। इसके पश्चात् चौहान राजवंश शक्तिशाली हुआ और उसने आक्रमण करके अपने अधिकार में ले लिया मालूम देता है । बिजोलिया के सं० १२२६ के शिलालेख के अनुसार विग्रहराज ने यहाँ के राजा सज्जन को बुरी तरह परास्त कर राजधानी जावालिपुर को जलाकर नष्ट कर दिया लिखा है यतः
कृतान्तपथ सज्जो भूत्सज्जनो सज्जतो भुवः । वैकुतं कुतं पालोगा (द्यत) वकु (त) पालकः ॥२०॥ जावालिपुरं ज्वाला (पु) रं कृता पल्लिकापि पल्लीव । न दू (ड्वि) ल तुल्यं रोषन्न (द) लं येन सौ (शौ)यण ॥२१॥
अर्थात्-विग्रहराज ( अर्णोराज के पुत्र ) ने सज्जन नामक कुन्त (जालौर) नरेश्वर को बुरी तरह परास्त किया था और कुन्त की राजधानी जावालिपुर में आग लगाकर उसे नष्ट कर दिया। पाली और नड्डूल नगरों का विनाश कर डाला। १. An advanced History of India में वत्सराज के पिता का नाम देवराज
( देव शक्ति) लिखा है जो नागभट प्रथम का भतीजा था। उसके पिता
का नाम अज्ञात लिखा है। २. यह अभिलेख सं० ११७४ (चैत्रादि ११७५) आषाढ सुदि ५ ( ई० सन्
१११८ ता. २५ जून ) मंगलवार का है, इसमें वीसल की रानी मेरल देवी
द्वारा सिन्धुराजेश्वर के मन्दिर पर स्वर्ण-कलश चढाये जाने का उल्लेख है। ३. 'राजस्थान के इतिहास का तिथि क्रम' के अनुसार चौहानों ने जालोर पर
ई० सन् ११४३ अर्थात् विक्रम संवत् १२०० में कब्जा किया था। उस समय तक यहां अंतिम परमार राजा सज्जन का राज्य होगा।
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