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(१०) वेशनो आडंबर देखीने खुशी थाय छ ने तेमां जा लोको धर्म माने छे. एटले ज्यां साधुपणानो बाह्य आडंबर देखवामां आव्यो, अगर ज्यां धर्मादंबरनी बाह्य रचना नजरे पडी के ते लोको गांडाघेला थइ जाय छे, नाचवा-कूदवा मांडे छे, अहोभाग्य मानी लांबा लांबा नमस्कारो करवा दोडी जाय छे. प्राथी आ लोकोने विद्वानो बालक कहे छे, कारण केआ सर्व चेष्टा बालयोग्य बालक जेवी देखाय छे. जेम कोई छोकराने तेना मावापे कयु के-देवपूजानो वेश, सामायक-प्रतिक्रमणनो वेश जेणे पहेर्यो होय, एवं रजोहरण, मुहपत्ति, पीला कपडां जेणे पहेयाँ होय ते धर्मी कहेवाय, ते साधु कहेवाय. बस
आटली शिखामणना अंते ज्यां उपरोक्त स्थिति बालकना देखवामां भावी के मावापनी शिक्षा याद करीते प्रमाणे मानवा दोडी जाय छे. भा ज स्थिति उपरोक्त वर्गना लोकोमा तदाकारपणे देखाय छे, माटे ज ग्रंथकर्ता एक ज पदथी जणावे छे-"बालः पश्यति लिंगं" " मध्यम वर्ग" ___बीजो वर्ग मध्यमबुद्धिनो जणान्यो छे. या लोको प्रथम वर्गनी अपेक्षाए अधिक चडता छे एटले बुद्धिमां पागल वधता होवाथी कांइक विचारशील होय छे. एटले तेश्रो उपरनी खास टापटीप, बाह्य वेश के आडंबर देखी मुग्ध नथी बनता, किन्तु विचार करे के के-केवल वेश तो दांभिको पण पेट भरवा स्वीकारे छ, माटे वेश साथे आचार, नियम अने क्रिया पा