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स्पष्टीकरण-बहोला जनसमूहमां अमुक ज लोको धर्मप्रति रुचिवाला अनुभववामां आवे छे, कारण के जनतानो म्होटो भाग तो केवल एशमाराम अने पुद्गलसुखविलासी ज देखाय छे. हवे जे लोको धर्मानुरागी जणाय छे तेमां पण केटलोक भाग तो वंशपरंपरागत कौटुंबिक प्रेरणाथी अथवा तो व्यवहारमां पोतानी निदा न थाय एटला माटे अगर बहुमानार्थे ज धर्म उपासना करे के. जे लोको धर्म उपासक छे ते सर्वे कांइ सत्य धर्मनी परीक्षा कर्या पछी ज धर्म सेवे छे एवं कांइछे नहीं. कारण-परंपरागत अथवा व्यवहार रक्षणार्थे के बहुमानार्थे कराता धर्ममां सत्यपणानी परीक्षा क्याथी संभवे ? न ज संभवे. निदान के बाह्य परीक्षा कर्या पछी पण सत्य धर्मनी सेवा करनार वर्गना त्रण विभाग पाडी शकाय. जेत्रो केवल प्रबुद्ध होय अर्थात् उपरनो बाह्य आडंबर देखी प्रसन्न थाय ते १, जेश्रो मात्र क्रिया-प्राचार विगेरे जाणी खुशी थाय ते २, भने जेनो शास्त्र-भागम अनुसारे वर्तन चेष्टा जाण्या पछी, तपास्या पछी प्रसन्न थाय ते ३, एटले जेत्रो सत्य धर्मनी परीक्षा करनार होय ते सर्वनो आत्रण विभागमा ज समावेश थइ जाय छे. पाथी अतिरिक्त कोइ पण लोको नथी. "बालवर्ग"
परमार्थ ए के जेयो अबुद्ध होय छे, विशिष्ट प्रकारनी सारासार समजवानी अने वस्तुतत्त्व समजवानी जेनोमां बुद्धिनी खामी होय छे, ते लोको केवल बाह्य वेश अथवा