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द्रव्य का लक्षण.
(५)
हैं वे किसी समय न्यूनाधिक नहीं होते अर्थात् कोई भी काल में घटते नहीं. इसी तरह नये बढते भी नहीं.
चेत्रांश -क्षेत्र से भेद जो विस्तीर्ण हो तो पृथक् अर्थात् जुदा क्षेत्र श्रवगाह के रहे. जैसे- जीवादि द्रव्य के प्रदेश अवगाहना धर्म से पृथक है. परन्तु द्रव्य से पृथक नहीं होते संलग्न रहते हैं. गुणपर्याय सब प्रदेशों में अनन्त है. वे स्त्रप्रदेश को छोड के अन्य प्रदेश में नहीं जाते, एक पर्याय अवि भाग की और प्रदेश की अवगाहना तुल्य है. वे पर्याय भिन्नपने अनन्त है. और वे अनन्त पर्याय संमिलित होके एक कार्य करे उस कार्य को गुण कहते हैं
काल
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- एक बस्तु में उत्पाद व्यय रूप पर्याय के परिवर्तन काल को समय कहते है. जितना उत्पाद व्यय तथा अगुरुलघु हानि वृद्धि की परिणमनता का भान है उसको समय कहते है. और इससे दूसरी परिणमनता हुई वह दूसरा समय । इस तरह अनन्त अतीत प्रवृत्ति हुई वह वर्तमान समय की परंपरारूप समझनी । और भविष्य में होने वाली है वह कार्यरूप से योग्यता रूप समझनी अतीत अनागतका कोई ढेर अर्थात् रासि नहीं है. यह पंचास्तिकायके वर्तना रूप जो परिणमन उसके मान को काल काल से भेद कहा.
कहते है, यह तीसरा
भाव – जो पर्याय भिन्न २ कार्य करे उन पर्यायो में कार्यभेद से मित्रता होती है. इस लिये यह चोथा भाव से भेद कहा. अब