Book Title: Naychakra Sara
Author(s): Meghraj Munot
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 146
________________ नयस्वरूप. (१२७) लंबिनश्च शब्दप्रधानार्थोपसर्जनाच्छन्दनया इति तत्त्वार्थवृत्तौ । एतेषु नैगमः सामान्य विशेषोभयग्राहकः, व्यवहारः विशेषग्राहकः द्रव्यार्थावलंबिऋजुमूत्र विशेषग्राहकः एवं एते चत्वारो द्रव्यनयाः शब्दादयः पर्यायार्थिकविशेषावलंबि भावनयाश्चेति शब्दादयो नामस्थापनाद्रव्य निक्षेपापत्रस्तुतया जानन्ति परस्पर सापेक्षाः सम्यकदर्शनिप्रतिनयं भेदानां शतं तेन सप्तशतं नयानामिति अनुयोगद रोक्कत्वात् ज्ञेयं । - अर्थ-इन सातों नयों में प्रथम की चार नय अविशुद्ध है इसलिये पदार्थ को सामान्यरूप से कहने का अधिकारी है इन नयों को कहीं अर्थनय भी कहा है. अर्थशब्द को द्रव्यार्थीक सममाना और शब्दारे तीन नय है वे शुद्धनय है. शब्दके अर्थ की इस में मुख्यता है. प्रथम की नय भेदरूपसे वचन-शब्द की वाच्यर्थ है, और शब्दादिनय लिंगादि अभेदसे वचन अभेदक है तथा भिन्न भिन्न ववन को भिन्नार्थग्राही है. और समभिरूढ सय भिन्न शब्द है उस वस्तु के पर्याय को नहीं मानता तथा एभूतनय भिन्न गोचर पर्याय को भिन्न मानता है। घटपने की चेष्टा संयुक्त हो उसको घट माने परन्तु एक कोने में रक्खे हुवे घट को घट नहीं मानता तथा चित्राम करता हो. उसी उपयोग में वर्तता हो उसी को चित्रकार कहे परन्तु वही चित्रकार सोया हो, खाता छो, बैठा हो उस समय उसको चित्रकार नहीं कहता। क्योंकि उस समय उपयोग रहित है. यह शब्द तथा अर्थ का भेदपना माननेवाला है. अर्थ की शुन्यतावाले शब्दको प्रमाण नहीं करता है.

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