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उत्पाद व्यय ध्रुव स्व०
है. " उत्पाद व्यय ध्रव युक्तंसत् " द्रव्य सत् लक्षण युक्त माना है इस लिये अगुरूलघु का परिणमन सब द्रव्य, प्रदेश
और पर्यायों में है. यह अगुरूलघु का उत्पाद व्यय कहा इति छट्ठा अधिकार ।
_तथा भगवती टीकायां तथा च अस्तिपर्यायतः सामर्थ्यरूपाविशेष पर्यायास्ते चानन्तगुणास्ते प्रतिसमयंनिमित्तभेदे नप. रावृत्तिरूपाः तत्र पूर्वविशेषपर्यायाणां नाशः अभिनव विशेष पर्यायाणामुत्पादः पर्यायत्वे - ध्रुवत्वं इत्यादि सर्वत्र ज्ञेयं इति सप्तमः॥
अर्थ-भगवतीसूत्र की टीका में कहा है कि अस्तिपर्याय से विशेषरूप सामर्थपर्याय अनन्तगुण है. अस्तिपर्याय ज्ञानादि गुण का अविभागरूप पर्याय है. जो उस प्रत्येक पर्याय में सर्व शेय जानने का सामर्थ है वह विशेष पर्याय हैं. तथा च महाभाष्ये " यावन्तो ज्ञेयास्तावन्तो ज्ञानपर्यायाः " इसी को सामर्थ पर्याय कहते हैं. सामर्थ पर्याय शेय की निमितता से है. ज्ञेय अनेक प्रकार से उत्पन्न होता है और अनेक प्रकार से विनाश होता है उसी तरह पर्याय भी पलटता है. वह प्रति समय निमित भेद की परावृत्ति होने से पूर्व विशेष पर्याय का विनास और अभिनव विशेष पर्याय का उत्पाद हुआ करता है और पर्यायरूय से भ. स्तिता ध्रुव है इस तरह गुण पर्याय का उत्पाद व्यय ध्रवपना कहा. इति सप्तमधिकारः यह अस्ति नास्ति स्वभाव का स्वरूप विस्तार पूर्वक कहा।