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सामान्य विशेष स्वभाव लक्षण. रहनेकी जगह और उसका आधारपना कभी भिन्न नहीं होता इस वास्ते द्रव्य में अभेद स्वभाव है ।
द्रव्य, गुण, पर्यायमें भेद स्वभाव नहीं माननेसे संकरता दोषकी प्राप्ति होती है गुण गुणी, लक्ष लक्षण, कार्य कारणता का नाश होता है और कार्य भेद नहीं हो शक्ता इस बास्ते द्रव्य, गुण, पर्याय भेद स्वभावी है. चेतना लक्षण सहित जीव और मजीव चेतना रहित वे अभेदपने है. परन्तु अजीव में धमास्तिकाय द्रव्य चलन सहकारी है. दूसरे अजीव द्रव्यो में यह गुण नहीं है. इसी तरह अधर्मास्तिकाय स्थिर सहायगुणी है. आकाश में अवगाहन गुण है. और पुद्गल रूपी स्कंधादि परिणामी है. इस तरह सव द्रव्य भेद रूपसे भिन्न द्रव्य कहेजाते है. अनन्ते जीव सव सरीषे हैं. उन सब जीवों को एक द्रव्य क्यों नहीं कहते ? उत्तर-जैसे-रूपिया चांदी रूपमें, उज्वलता ओर तौलपने सहस है परन्तु वस्तुरूप पिंडपने भिन्न है. इसलिये वे भिन्न कहेजाते है इसी तरह जीवकी भी भिन्नता समझ लेनी. उत्पाद व्ययका चक्र पूर्ववत है परन्तु परिवर्तन सवका एक समान नहीं हैं. और भगुरुलघुकी हानि वृद्धि का चक्र सब द्रव्यों में अपना २ है. इसलिये सवजीव और सव परमाणु भिन्न २ है. वास्ते भेद स्वभावमाय द्रव्य है। · वस्तु में अभेद स्वभाव नहीं मानने से स्थानभ्वंस होता है अर्थात् स्थान कौन स्थान में रहनेवाला कौन इत्यादिका प्रभाव होता