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सामान्य स्वभाव
(२७) कहा है. इस तरह ये छ स्वभाव सब द्रव्यों में परिणमते हैं. यह द्रव्यका मुख्य स्वभाव है. प्रदेश का भिन्नपना और द्रव्यका भिन्नपना यह अगुरुलघु के मेदसे होता है इस लिये ये के सामान्य स्वभाव है, यह द्रव्यास्तिक धर्म है और इसका जो परिणमन है वह पर्यायास्तिक धर्म है किसीका कहना है पर्यायका पिंड है वह द्रव्य है परन्तु द्रव्यपना भिन्न नहीं है. जैसे-धुरी, चक्र, डाड़ी जुहा प्रमुख समुदायको गाड़ी कहते है वह गाड़ी उन अवयवों से भिन्न नहीं है इसी तरह ज्ञानादि गुणसे आत्मा भिन्न नहीं है ? उत्तर-जो ज्ञानादि गुणमें समुदाय रुपसे स्थित हो. द्रव्यमें संमिलित न हो उसको पर्याय कहते हैं. और अर्थ क्रियात्मक समुदाय रुप वस्तुको द्रव्य कहते है. अर्थात् द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिक दोनों मिलनेसे द्रव्य कहलाता है. उक्तंच-" संमतो दव्वा पजवरहिआ न पज्जवादव्वओवि उत्पत्ति ए । इति सामान्य स्वभावाः
तत्र अस्तित्वं उत्तर सामान्य स्वभावगम्यं ते चोत्तर सामान्य स्वभावा अनन्ता अपि वक्तव्येन त्रयोदश । (१) अस्तिस्वभावः (२) नास्ति स्वभावः (३) नित्यस्वभावः (४) अनित्यस्वभावः (५) एकस्वभावः (६) अनेकस्वभावः (७) भेदस्वभावः (८) अभेदस्वभावः (६) भव्यस्वभावः (१०) अभव्यस्वभावः (११) वक्तव्यस्वभावः (१२) अवक्तव्यस्वभावः (१३) परमस्वभावः इत्येवं रुपं वस्तु सामान्यानन्तमयम् ।। अर्थ-वह अस्तित्व उत्तरसामान्य स्वभाव गम्य है. और