________________
(१४४)
नयचक्रसार हि० अ०
तत्र के रसिक जेहि, ताते अनुरोध येहि । गुणग्राही होउ जाते, उच्चपद पायो है ॥ उत्तम वैसाख मास, अक्षय त्रितीय खास | समतोगणीस आठ, पांच (१६८५) को बनायो है ॥ २ ॥
श्रीमदुपाध्याय देवचन्द्रजी कृत नयचक्रसार का यह हिन्दी अनुवाद शा० लाधूरामजी तत् पुत्र मेघराज मुणोत फलोधीवालेने स्पर हित के लिये बनाया है. अल्पज्ञाता के कारण न्यूनाधिक लिखा हो उसके लिये क्षमा प्रदान करेंगे सुज्ञेषु किम् बहुना || श्रीरस्तु
कल्याणमस्तु ||
इति श्रीमद् देवचन्द्रजी कृत नयचक्रस्य हिन्दी अनुवाद समाप्तम् ॥