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नयचक्रसार हि. अ. तथा द्रव्यका प्रगटपना मानते हैं उस को द्रव्य व्यंजन पर्याय कहते हैं। - (२) द्रव्य का वह गुण जो अन्यद्रव्य में नहीं होता उस को विशेषगुण कहते हैं; जैसे-जीव का चेतनादि; धर्मास्तिकाय का चलनसहकार; अधर्मास्तिकाय का स्थिरसहकार; आकाश में अवगाहदान; और पुद्गल में पुरणगलनपना ये गुण द्रव्य की भिन्नता को प्रगट करते हैं; इस लिये इन को व्यंजन पर्याय कहते हैं।
(३) प्रत्येक गुण के अविभागपर्याय अनन्त हैं; उन के पिंड को अर्थात् उन अविभागपर्यायों के समुदाय को गुण पर्याय
कहते हैं। - [४ ] ज्ञान का जाननापन; चारित्र का स्थिरतापन अथवा-ज्ञान के मतिज्ञानादि पांच भेद; दर्शन के चक्षुदर्शनादि; चारित्र के क्षमा मार्दवादि भेद तथापुद्गल का वर्णगन्धरसस्पर्शमूर्तादि और अरूपी गुण का अवर्ण अगन्ध अरस अस्पर्श इत्यादि मुण हैं वे गुण व्यंजन पर्याय हैं ।
[५] स्वभाव पर्याय-वस्तु का कोइ स्वभाव ऐसा.जो अगुरुलघुपने के प्रकार की हानि तथा छे प्रकार की वृद्धि एवं बारह प्रकार से परिणमन करता है इस में किसी का प्रयोग-सहायता नहीं है किन्तु वस्तु का मूल स्वभाव-धर्म ही है; इस का स्वरूप पूर्णतया वचनगोचर नहीं होता और अनुभवगम्य भी