Book Title: Naychakra Sara
Author(s): Meghraj Munot
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 153
________________ (१३४) नयचक्रसार हि० प्र० इन्द्रियों की प्रवृत्ति विना जो ज्ञान है उस को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं. जिसके दो भेद हैं (१) देश प्रत्यक्ष (२) सर्व प्रत्यक्ष. अवधि तथा मनःपर्यव ज्ञान देश प्रत्यक्ष है. क्यों कि अवधिज्ञान एक पुद्गल परमाणु के द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव के कितनेक पर्यायों को देखता है. और मनःपर्यव ज्ञान मन के पर्यायों को प्रत्यक्ष देखता है परन्तु दूसरे द्रव्यों को नहीं देखता इसी लिये दोनों ज्ञान को देश प्रत्यक्ष कहा है वे वस्तु के देश को जानते है किन्तु सम्पूर्ण रूप से नहीं जानते. और केवलज्ञान है वह जीवाजीव, रूपी, अरूपी, सर्व लोकालोक, तीनों काल के भावों को प्रत्यक्ष रूप से जानता है इस लिये सर्व प्रत्यक्ष कहा है । मति श्रुति ये दोनों ज्ञान अस्पष्ट ज्ञान है इस लिये ये परोक्ष है. परोक्ष प्रमाण के चार भेद हैं. (१) अनुमान प्रमाण (२) उपमान प्रमाण (३) आगम प्रमाण (४) अर्थापत्ति प्रमाण । चिन्ह से जिस पदार्थ की पहिचान हो उस को लिंग कहते हैं. उस के अवबोध से जो ज्ञान हो उस को अनुमान प्रमाण कहते हैं. जैसे पर्वत के सिखर पर आकाशावलम्बी धूवे की रेखा देखने से अनुमान होता है कि यहां अग्नि है. क्यों कि जहां धूवा होता है वहां अग्नि अवश्य होती है. आकाश को पहुंचती हुई जो धूम्र रेखा है वह विना अग्नि के नहीं हो शक्ति इस को शुद्ध अनुमान प्रमाण कहते हैं. यह प्रमाण मतिज्ञान श्रुतज्ञान का कारण है जो यथार्थ ज्ञान हो उस को मान " प्रमाण " कहते है. और अयथार्थ ज्ञान है वह प्रमाण नहीं है ।

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