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नयचक्रसार हिं० अ० प्रतिमास का उत्पाद और ज्ञानरुप से ध्रुव इसी तरह दर्शनादि सब गुणों का प्रवर्तन समझ लेना ।
जिस समय धर्मास्तिकाय संख्यातप्रदेश परमाणु का चलनसहकारी था वह फिर समयान्तर असंख्यात परमाणु को चलनसहकारी है. तब संख्यात परमाणु के चलनसहकारीपने का व्यय
और असंख्यात, अनन्त परमाणु के चलनसहकारपने का उत्पाद है तथा चलनसहकारी गुणरुप से ध्रुव है. . इसी तरह अधर्मास्ति कायादि में सब गुणों की प्रवृत्ति होती है इस रीति से द्रव्य में अनन्त गुण की प्रवृत्ति है ।
प्रश्न-धर्मास्तिकाय के चलनसहकार गुण में अनन्त जीव और अनन्त पुद्गल परमाणु की चलनसहकारीता हैं. और जब बह संख्यात, असंख्यात. जीव, परमाणुओं को चलनसहकारिता पने प्रवर्तमान है उस समय वह कोनसा गुण है जो अप्रवर्तमान रुप से रहा हुवा है।
उत्तर-जो निरावर्ण द्रव्य है उसके गुण अप्रवर्तन नहीं रहते. किन्तु-चलन सहकारी गुण के सब पर्याय जिस समय जितने जीव, पुद्गल परमाणु आवे उस सब को चलन सहकारीता पने होते है. क्यों कि अलोकाकाश में जो अवगाहक जीव, पुद्रल नहीं है तो भी अवगाहक दानगुण तो प्रवर्तमान ही है. इसी बरह धर्मास्तिकायादि में भी न्यूनाधिक जीव, पुद्गल के प्राप्त होने