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" नित्यत्वादि स्वभावमाह"
“ तत्त्वार्थे-तद्भावाव्ययं नित्यम् "
तत्वार्थसूत्रसे नित्य स्वभाव कहते हैं. वस्तुमें जिस धर्मका पलटन स्वभाव नहीं है. अर्थात् यथार्थ रूपसे रहे उसको नित्य स्वभाव कहते हैं. नित्य स्वभावके दो भेद हैं. यथाएका अप्रच्युति नित्यता द्वितीया पारं पर्य नित्यता.॥ ... तथा द्रव्याणां ऊर्बप्रचय तिर्यग्प्रचयत्वेन तदेव द्रव्यमिति ध्रुवत्वेन नित्यस्वभावः नवनवपर्यायपरिणमनादिभिः उत्पतिव्ययरूपो नित्यस्वभावः उत्पत्तिव्ययस्वरूपमनित्यम् । .... अर्थ--एक प्रच्युतिनित्यता और दूसरी पारंपर्य नित्यता. जो द्रव्य उर्ध्वप्रचय, तिर्यग् प्रचयत्वरूपसे स्वद्रव्यपने ध्रुव हो। उसको अप्रच्युति नित्यस्वभाव कहते हैं। नवनवा पर्याय परिणमनादि उत्पत्ति व्ययरूप नित्य स्वभाव है. तथा उत्पत्ति विनास स्वरूप अनित्य स्वभाव है. ...विवेचन-नित्यस्वभावके दो भेद है. (१) अग्नच्युति नित्यता (२) पारंपर्य नित्यता. अप्रच्युति नित्यता उसको कहते हैं जो द्रव्य उर्ध्वप्रचय, तिर्यगप्रचयपने परिणत होते हुवे भी यह द्रव्यवही है ऐसी ध्रुवतारूप ज्ञान हो अर्थात् तीनों कालमें स्वस्व