Book Title: Naychakra Sara
Author(s): Meghraj Munot
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 110
________________ गु०,पर्याय स्वरूप. कहा है. वे असत् है इनको आरोपपने से कोई कह भी दे तो केवल कथनमात्र है परन्तु अस्तिरूप नहीं है जिसधर्मकी आरोप से वा उपचार से गवेषणा कि जाय वह वास्तवीक वस्तुधर्म नहीं है. उपाधीरूप है और उपाधी है वह वस्तु सत्ता नहीं समझी जाती। यह विशेष स्वभाव कहा. धर्मास्तिकाये अमूर्ताचेतनाक्रियागतिसहायादयोगुणाः । अधर्मास्तिकाये अमूर्ताचेतनाक्रिया स्थितिसहायादयो गुणाः । आकशास्तिकाये अमूर्ताचेतनाक्रियावगाहनादयो गुणाः पुद्गलास्तिकाये मूर्ताचेतनासक्रियपुरगागलनादयोवर्णगन्धरसस्पर्शादयो गुणाः जीवास्तिकाये ज्ञानदर्शनचारित्रवीर्य अव्याबाधामूर्ताऽगुरुलध्वनवगाहादयो गुणाः । एवं प्रति द्रव्यं गुणानामनन्तत्वं ज्ञेयम् ॥ ___ अर्थ-धर्मास्तिकायके चार गुण (१) अरूपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) गतिसहाय इत्यादि अनन्तगुणी है । अधर्मास्तिकायके चार गुण (१) अरूपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) स्थितिसहाय इत्यादि अनन्तगुणी है । आकाशास्तिकाय के चार गुण (१) अरूपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) अवगाहनादि अनन्त गुणी है । पुद्गलास्तिकायके चार गुण (१) रूपी (२) अचेतन (३) सक्रिय (४) पुरणगलन (१) वर्ण (२) गंध (३) रस (४) स्पर्श इत्यादि अनन्तगुणी है । जीवास्तिकाय में (१) ज्ञान (२) दर्शन (३) चारित्र (४) वीर्य (५) अव्याबाध (६) अरूपी (७) अगुरुलघु

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